मजहब को यह मौका न मिलना चाहिए कि वह हमारे साहित्यिक, सामाजिक, सभी क्षेत्रों में टाँग अड़ाए। - राहुल सांकृत्यायन।
 
वे डरते हैं (काव्य)     
Author:गोरख पाण्डेय

किस चीज़ से डरते हैं वे
तमाम धन-दौलत
गोला-बारूद पुलिस-फ़ौज के बावजूद?
वे डरते हैं
कि एक दिन
निहत्थे और ग़रीब लोग
उनसे डरना
बंद कर देंगे ।

-गोरख पाण्डेय
(रचनाकाल 1979)

[जागते रहो सोने वालो, राधाकृष्ण प्रकाशन, नई दिल्ली, 1983]

Previous Page  | Index Page  |   Next Page
 
 
Post Comment
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश